किसानों के बच्चों की पढ़ाई से लेकर मरीजों की दवा तक बना सिद्धिविनायक मंदिर सहारा
- ईश्वर की छाया में मानवीय करुणा की मशाल
- From Education of Farmers’ Children to Medicines for Patients, Siddhivinayak Temple Becomes a Beacon of Support
- A Torch of Human Compassion Under the Shadow of the Divine
संतोष दुबे, नारद वार्ता संवाददाता, मुंबई: मुंबई के हृदयस्थल प्रभादेवी में जहां एक ओर श्रद्धा के पुष्प खिलते हैं, वहीं दूसरी ओर सेवा की गंगा बहती है।श्री सिद्धिविनायक गणपति मंदिर का धाम, आज केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि मानवता की वंदना का स्थल बन चुका है।यह वह स्थान है जहां के देवता अस्पताल के पलंगों, छात्र की किताबों, किसान की पीड़ा और नारियल के सूखे छिलकों में भी आशीर्वाद देने बसते हैं। जहां आरती की गूंज में कराहती आत्माओं की पुकार सुनी जाती है और जहां हर दीपक किसी ज़रूरतमंद के जीवन में उजाला बन कर जलता है।
जब मुंबई के दैनिक अखबार के रिपोर्टर ने श्री सिद्धिविनायक गणपति मंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष आचार्य पवन त्रिपाठी से बातचीत की, तो उनकी आँखों में केवल योजनाओं की रूपरेखा नहीं, एक पुजारी की करुणा, एक पिता की चिंता और एक नागरिक की चेतना झलक रही थी।
वे बोले, ‘मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों के विकास एवं जीर्णोद्धार हेतु संकल्पबद्ध है। इसी क्रम में काशी, उज्जैन और वैष्णो देवी की तरह अब मुंबई के इस मंदिर को भी एक ऐसा स्वरूप देने की योजना है, जहां श्रद्धालु जब प्रभादेवी या दादर स्टेशन पर उतरे, तो धरती पर पहला कदम रखते ही उसके मन में ईश्वर उतर आए।’ कॉरिडोर की योजना केवल ईंट और पत्थरों का स्थापत्य नहीं, यह श्रद्धा की चादर पर सुविधा की किनारी है। आठ भव्य द्वार, 32 नामों से सजे चौक, अंडरग्राउंड पार्किंग, शेड, वॉच टॉवर — यह सब नहीं, एक संस्कृति की आत्मा को शहर की धड़कनों में पिरोने का प्रयास है।
यह मंदिर केवल पूजा का स्थल नहीं, सेवा का तीर्थ है…
जब उन्होंने बताया कि हर दिन मंदिर ट्रस्ट 18 से 20 लाख रुपये तक की चिकित्सा सहायता देता है, तो लगा जैसे किसी तपस्वी की कमाई का हर अंश दूसरे के दुख से त्राण दिलाने में लगा हो।एक डायलिसिस का खर्च 950 होता है, हम उसमें से 750 खुद वहन करते हैं। गरीब मरीज़ों पर बोझ न हो, यह हमारी श्रद्धा का वास्तविक अर्थ है।यह सेवा नहीं, साक्षात भक्ति है।
जहां किसानों की पीड़ा पहुंचती है, वहां गणपति का करुणामय हाथ बढ़ता है
कभी किसी खेत में जल गई आशा की फसल, कभी आत्महत्या कर बैठा कोई पिता, लेकिन उनके पीछे जो बच्चे छूट जाते हैं, उनके भविष्य की राह में अब सिद्धिविनायक मंदिर दिया बनकर जल रहा है।
आचार्य त्रिपाठी ने कहा —’जिस जिले में किसान ने आत्महत्या की है, यदि जिलाधिकारी हमसे संपर्क करें तो हम उस बच्चे की पूरी उच्च शिक्षा का खर्च उठाएंगे। यह गणपति का आदेश है और हमारा कर्तव्य।’
ज्ञान का दीप जले हर मन में…
पचास हजार किताबों की लाइब्रेरी, AC वातावरण, बुक बैंक, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे युवाओं के लिए एक शांत तपोभूमि।यह केवल पुस्तकालय नहीं, युवाओं की आत्मा में जगी हुई प्रज्ञा का मंदिर है।
नारियलवड़ी बंद है, पर सेवा का स्वाद जारी है…
सुरक्षा कारणों से नारियल चढ़ाने पर रोक लगी है और इसलिए प्रसिद्ध नारियलवड़ी प्रसाद भी बंद है, परंतु यह प्रसाद एक दिन फिर लौटेगा — क्योंकि सेवा जब रुकती नहीं, तो प्रसाद की खुशबू भी लौट आती है।
आइए, जुड़िए सेवा के इस महायज्ञ से…
आचार्य त्रिपाठी ने आखिर में जो कहा, वह केवल शब्द नहीं, एक पुकार थी — समाज की ओर, चेतना की ओर, करुणा की ओर। उन्होंने कहा, ‘यह मंदिर केवल ईश्वर का धाम नहीं, यह हर उस इंसान की आशा है जो किसी न किसी वजह से टूटा है। सक्षम लोग आइए, जुड़िए। और जिन्हें ज़रूरत है, वे झिझकें नहीं — आवेदन करें, हम साथ हैं।’