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महाकुंभ 2025 है आत्मज्ञान और सनातन संस्कृति का अद्वितीय संगम

  • करौली शंकर महादेव ने बताया महाकुंभ का सबसे बड़ा चमत्कार – स्वयं को जानना
  • Mahakumbh 2025: A Unique Confluence of Self-Realization and Sanatan Culture, Karauli Shankar Mahadev Declares the Greatest Miracle of Mahakumbh – Knowing Oneself

Narad Varta, नारद वार्ता संवाददाता, महाकुंभ नगर, प्रयागराज: प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ 2025 का अद्वितीय वातावरण, सनातन धर्म की महिमा और आत्मज्ञान की यात्रा पर करौली शंकर महादेव ने गहरी चर्चा की। उन्होंने एक न्यूज एजेंसी से बातचीत में महाकुंभ की व्यवस्था की सराहना करते हुए इसे अलौकिक और अद्वितीय बताया। महाकुंभ के महत्व को समझाते हुए उन्होंने इसे आत्मज्ञान प्राप्त करने और जीवन के उद्देश्य को पहचानने का सर्वोत्तम अवसर बताया।

महाकुंभ की महिमा और सनातन धर्म का महत्व

करौली शंकर महादेव ने कहा, ‘महाकुंभ सनातन धर्म का अद्वितीय उत्सव है। यह केवल गंगा स्नान तक सीमित नहीं है। इसमें भाग लेने वाला हर व्यक्ति मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध होता है। यह आयोजन विशेष नक्षत्रों और मुहूर्तों में होता है, जो इसे अद्वितीय बनाते हैं।’

उन्होंने यह भी कहा कि कुंभ का सबसे बड़ा चमत्कार है – आत्मज्ञान। जो व्यक्ति स्वयं को जान लेता है, वह भोग और त्याग से ऊपर उठ जाता है और जीवन में संतुलन साध लेता है।

महाकुंभ में स्नान और सेवा का है महत्व

करौली शंकर महादेव ने कहा कि महाकुंभ में केवल स्नान करना ही नहीं, बल्कि यहां की ऊर्जा और सकारात्मक विचारों को आत्मसात करना भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने सुझाव दिया, ‘अगर कोई व्यक्ति स्नान नहीं कर सकता, तो संगम का जल अपने घर ले जाकर स्नान करें। यह भी उतना ही प्रभावशाली है।’

हिंदू संस्कृति का वैश्विक प्रभाव

हिंदू सनातन संस्कृति की महिमा पर बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘यह संस्कृति पूरे विश्व में आकर्षण का केंद्र है। सनातन का अर्थ है जो सदा रहे। पंचतत्वों और प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर जीने का यह तरीका आज भी प्रासंगिक है। यही कारण है कि विश्वभर के लोग इस ओर आकर्षित होते हैं।’ उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की सहिष्णुता, पोषण और पालन की परंपरा इसे अद्वितीय बनाती है।

संतों के भेष में आडंबर पर प्रहार

करौली शंकर महादेव ने संत समाज में बढ़ते आडंबर और दिखावे पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, ‘संतों का जीवन त्याग, साधना और ज्ञान पर आधारित है। ग्लैमर और दिखावा इस परंपरा का हिस्सा नहीं है। यह संस्कृति आत्मज्ञान और अनुशासन की है, जिसमें आडंबर का कोई स्थान नहीं।’

संविधान और सनातन धर्म की सह-अस्तित्व की जरूरत उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सनातन धर्म की गरिमा बनाए रखने के लिए संविधान का पालन करना अनिवार्य है। हमें अपने महापुरुषों की परंपराओं का पालन करते हुए, कानून का आदर करना चाहिए। यह विद्रोह की नहीं, बल्कि सहिष्णुता की संस्कृति है।

जीवन को समझने का अवसर

महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि जीवन को समझने और आत्मज्ञान प्राप्त करने का अद्भुत मंच है। करौली शंकर महादेव ने कहा, ‘इस अद्वितीय महाकुंभ में हर व्यक्ति को आना चाहिए और इसे आत्मिक, मानसिक और शारीरिक शुद्धि का साधन बनाना चाहिए।’

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