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महाकुंभ: कांची शंकराचार्य की श्रद्धालुओं से अपील, गंगा की पवित्रता बनाए रखें

Narad Varta नारद वार्ता संवाददाता, मुंबई/चेन्नई: कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी विजयेंद्र सरस्वती ने श्रद्धालुओं से महाकुंभ में बड़ी संख्या में भाग लेने और गंगा की पवित्रता को बनाए रखने की अपील की है। उन्होंने कहा कि महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सनातन धर्म की गहरी आस्था और संस्कृति का प्रतीक है।

महाकुंभ में गंगा स्नान का महत्व

शंकराचार्य विजयेंद्र सरस्वती ने महाकुंभ के दौरान गंगा नदी में स्नान और पूजा करते समय गंगा की शुचिता बनाए रखने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है। इसके महत्व को वेदों, पुराणों और हमारी परंपराओं में सदियों से दर्शाया गया है। भगवान आदि शंकराचार्य ने भी गंगा में स्नान कर ध्यान किया था। गंगा हमारे लिए पूजनीय हैं, और इसे स्वच्छ रखना हमारा कर्तव्य है।”

त्रिवेणी संगम पर श्रद्धालुओं की भागीदारी से प्रसन्नता

शंकराचार्य ने प्रयागराज महाकुंभ के प्रारंभ में त्रिवेणी संगम पर बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं की भागीदारी पर प्रसन्नता जताई। उन्होंने कहा, “महाकुंभ हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक लोकाचार का संगम है। यहां विभिन्न अखाड़ों के साधु-संतों, महिलाओं और पुरुषों की उपस्थिति भारत की आध्यात्मिक एकता को दर्शाती है।”

सनातन धर्म और महाकुंभ का महत्व

शंकराचार्य ने कहा, “सनातन धर्म हमारे राष्ट्र की पहचान का हिस्सा है। जीवन का सनातन मार्ग शांति और सुरक्षा का मार्ग दिखाता है, जो भौतिक और आर्थिक प्रगति को संभव बनाता है। महाकुंभ इसकी अद्भुत झलक है। त्रिवेणी संगम पर स्नान का विशेष धार्मिक महत्व है और यह हमारी आध्यात्मिक परंपरा का प्रतीक है।”

आस्था का प्रतीक

उन्होंने 36 साल पहले कांची के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती के महाकुंभ में भाग न ले पाने का जिक्र करते हुए कहा कि उनके लिए त्रिवेणी संगम से गंगा जल विशेष विमान से लाया गया था। यह गंगा के प्रति हमारी आध्यात्मिक आस्था का प्रतीक है।

श्रद्धालुओं से अपील

शंकराचार्य ने सनातन धर्म में आस्था रखने वाले सभी लोगों से महाकुंभ में भाग लेने और गंगा नदी में स्नान कर इस धर्मयात्रा को सफल बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि गंगा की पवित्रता बनाए रखना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। महाकुंभ के इस पवित्र आयोजन में भाग लेने के लिए यह अपील न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की गहराई को भी दर्शाती है।

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