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आईआईटी से यूएस, फिर भारत वापसी और वेदांत का मार्ग: महाकुंभ में आचार्य जयशंकर की प्रेरणादायक यात्रा

Narad Varta, नारद वार्ता संवाददाता, महाकुंभ नगर, प्रयागराज: महाकुंभ 2025 के शुभारंभ के साथ, भारत की संस्कृति और आध्यात्मिकता को समझने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु प्रयागराज की ओर रुख कर रहे हैं। इन्हीं श्रद्धालुओं में कुछ ऐसे भी हैं, जो भौतिक जीवन को त्यागकर अध्यात्म के पथ पर अग्रसर हुए हैं। ऐसे ही एक प्रेरणादायक संत हैं आचार्य जयशंकर, जिन्होंने भारतीय जीवन-दर्शन को अपनाने के लिए अमेरिका की उच्च जीवनशैली और नौकरी छोड़ दी।

आचार्य जयशंकर ने अपनी कहानी साझा करते हुए बताया कि वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बीटेक करने के बाद अमेरिका गए। वहां उन्हें शानदार नौकरी और भौतिक सुख-सुविधाएं मिलीं, लेकिन उनका मन अशांत रहा। भौतिक उपलब्धियों के बावजूद, जीवन में संतोष का अनुभव नहीं हुआ। इस अधूरेपन के बीच, उनकी मुलाकात ऋषिकेश स्थित आश्रम के गुरु स्वामी दयानंद सरस्वती से हुई। उनके विचारों ने जयशंकर का जीवन बदल दिया और उन्हें वेदांत के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।

आचार्य जयशंकर ने बताया, ‘मैंने महसूस किया कि दुनिया में हर कोई आनंद, सुख और तृप्ति चाहता है। लेकिन स्थायी आनंद की तलाश करना भौतिक जगत में संभव नहीं है। अमेरिका में मैंने देखा कि हर व्यक्ति, चाहे वह जितना भी सुखी दिखे, भीतर से असंतुष्ट है। हमारी भारतीय संस्कृति ही एकमात्र ऐसा मार्ग है जो स्थायी आनंद और मोक्ष का ज्ञान देती है।’

भारत लौटकर उन्होंने अपने गुरु के सान्निध्य में वेदांत की शिक्षा ग्रहण की और अब वे दूसरों को भी यह ज्ञान दे रहे हैं। आचार्य जयशंकर कहते हैं, ‘भौतिक जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है। हर वस्तु एक दिन खत्म हो जाएगी। लेकिन हमारी आत्मा नित्य और सत्य है। वेदांत हमें यही सिखाता है।’

उन्होंने समाज को संदेश देते हुए कहा कि हर व्यक्ति को धर्म के अनुसार कार्य करना चाहिए। हमारे शास्त्रों में धर्म को पहला पुरुषार्थ बताया गया है। जहां धर्म नहीं है, वहां मोक्ष भी संभव नहीं है। जीवन में जो भी करें, वह धर्म के अनुरूप होना चाहिए।

आचार्य जयशंकर ने महाकुंभ में प्रशासन की व्यवस्थाओं पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा, ‘यह आयोजन केवल स्नान तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मा के शुद्धिकरण का एक अवसर है। यह आध्यात्मिक उत्थान के लिए एक बड़ा मंच है। महाकुंभ को पिकनिक या पर्यटन के रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसे आध्यात्मिक साधना के रूप में अपनाना चाहिए।’

आचार्य जयशंकर ने भूतकाल को छोड़कर वर्तमान को महत्व देने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘हमारे ऋषियों की कहानियों में भी उनके अतीत से अधिक उनके वर्तमान कर्म महत्वपूर्ण रहे हैं।’

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